Posted: February 21, 2020
“और देखो, मैं जगत के अन्त तक सदैव तुम्हारे संग हूँ” (मत्ती 28ः20)
बुरकीना फासो में, पिछले चार वर्षों से भी अधिक समय से, हम आतंकवादी हमलों का सामना कर रहे हैं। यह स्थिति समझ से परे है, क्योंकि यद्यपि हमले बार बार होते जा रहे हैं, परन्तु किसी ने भी अब तक इसकी जिम्मेदारी नहीं ली है।
इस स्थिति के कारण, कलीसिया समेत समाज के सभी घटकों से सम्पर्क कर सरकार निवेदन कर रही है कि वे स्थिति को स्पष्ट करने में सरकार की सहायता करें, सरकार को सुझाव दें, और राष्ट्र के लिए प्रार्थना करें।
बोबो-डियोलास्सो में, जहाँ रह कर मैं अपनी पासवानी सेवकाई देता हूँ, फेडरेशन ऑफ इव्हेंजलिकल चर्चेज़ एण्ड मिशन्स में, सरकार के मंत्रालय की ओर से अनेक प्रतिनिधि मुलाकात के लिए आ चुके हैं।
मानवाधिकार
इन मुलाकात के दौरान, मुझे कलीसिया की ओर से बोलने का अवसर मिला। मैंने मानवाधिकार मंत्रालय की मंत्री महोदया और एकता मंत्रालय के प्रतिनिधि को बताया कि उनके कार्य की नींव बाइबल के सिद्धान्तों पर आधारित है।
मानवाधिकारों का बचाव करने के लिए बाइबल ही आधारभूत दस्तावेज है।
परमेश्वर निर्बल से निर्बल व्यक्ति के अधिकारों का बचाव करने की आवश्यकता की ओर परमेश्वर ध्यान देता है। क्या बाइबल यह नहीं कहतीः“न तो विधवाओं पर अन्धेर करना, न अनाथों पर, न परदेशी पर, और न दीन जन पर; और न अपने मन में एक दूसरे की हानि की कल्पना करना।” (जकर्याह 7ः10)
सबसे पहली और महत्वपूर्ण बात, परमेश्वर मानवाधिकारों का बचाव करने वाला परमेश्वर है।
जब मैं कलीसिया में उपदेश देता हूँ और अपने सरकारी अधिकारियों के साथ वचन को बाँटता हूँ, तो मेरे व्यक्तिगत विश्लेषण के अनुसार, मैं यही कहता हूँ कि मेरे देश में आए इस संकट का कारण निम्नलिखित अन्यायपूर्ण व्यवहार हैंः
- देश के संसाधनों का गलत बंटवारा, जिसके कारण बेरोजगारी बढ़ती जा रही है, और देश के युवा आतंकवादी और जेहादी गतिविधियों में शामिल होते जा रहे हैं।
- मानवाधिकार संगठनों के अनुसार, कानून के बाहर जा कर भी लोगों को मृत्युदण्ड दिया जा रहा है। मैंने एक युवा की गवाही को सुना जिसमें उसने कहा, “हम में से कुछ लोग आतंकवादी और जेहादी गतिविधियों में इसलिए शामिल हो जाते हैं क्योंकि हमारे परिवार के सदस्यों का अपहरण कर लिया गया, सुरक्षाबलों के द्वारा उन पर दोष लगाया गया, और उन्हें गायब कर दिया गया, इसलिए उनके साथ जो कुछ हुआ, उसका बदला लेने के लिए, हम सरकारी तंत्र से लड़ाई कर रहे हैं।”
न्याय के बिना शान्ति सम्भव नहीं है।
शान्ति और न्याय
हमारे देश के अधिकारियों को हम पर भरोसा है और वे शान्ति स्थापना में हमसे योगदान चाहते हैं। जितनी बार वे हमारे पास आते हैं, उतनी बार हम परमेश्वर की प्रतिज्ञाओं के सहारे उन्हें आशा प्रदान करते हैंः “क्या ही धन्य है वह जाति जिसका परमेश्वर यहोवा है, और व समाज जिसे उसने अपना निज भाग होने के लिए चुन लिया है” (भजन 33ः12)।
इस प्रकार के वचनों के सहारे, हम बुरकीना फासो को परमेश्वर के नियंत्रण में सौंपते हैं। हमारा यह विश्वास है कि प्रार्थनाओं के रूप में कलीसिया की ओर से दिया जाने वाला योगदान देश पर असर डालता है। हम बिना रूके यह कहते हैं, “यदि घर को यहोवा न बनाए, तो उसके बनानेवालों का परिश्रम व्यर्थ होगा” (भजन 127ः1ब)।
हम अपने देश के लिए प्रार्थना सभाओं का भी आयोजन करते हैं और इन अवसरों पर प्रशासनिक और राजनैतिक अधिकारियों को आमंत्रित करते हैंः
पिछले वर्ष जब हम ऐसी ही एक प्रार्थना सभा की तैयारी कर रहे थे, संसद के सभापति हमसे मिलने के लिए आए। उन्होंने हमसे निवेदन किया कि हम राष्ट्र के लिए प्रार्थना करें ताकि लड़ाई झगड़े और राजनैतिक मतभेद दूर हो सकें।
जब उन्हें यह ज्ञात हुआ कि हम हाऊस ऑफ कल्चर में एक प्रार्थना सभा का आयोजन कर रहे हैं, तो उन्होंने किराए पर लिए जाने वाले परिसर का पूरा व्यय उठाया, और साथ ही प्रतिभागियों के स्वल्पाहार का भी प्रबन्ध किया, यद्यपि वे एक मुसलमान थे।
अनन्त परमेश्वर इस संघर्ष में हमारी आशा है। कुछ ही दिनों में एमडब्ल्यूसी का प्रतिनिधिमण्डल हमसे मुलाकात करने आने वाला है, और यह जानकर हमारी आशा को मजबूती प्राप्त होगी, कि हमारे भाई बहन हमारी सुधि लेते हैं और हमारे लिए प्रार्थना करते हैं।
“परमेश्वर हमारा शरणस्थान और बल है, संकट में अति सहज से मिलनेवाला सहायक. . .वह पृथ्वी की छोर तक की लड़ाइयों को मिटाता है. . .” (भजन 46ः1,9)।
- सियाका त्रोआरे के द्वारा जारी मेनोनाइट वर्ल्ड काँफ्रेंस विज्ञप्ति। सियाका डीकन्स कमीशन की अध्यक्षा हैं और बुरकीना फासो में निवास करती हैं।
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